Thursday, September 6, 2007

न समजे...!

न समजे तुला
न समजे मला
हे प्रेम झाले
कधी कुणा...!1

बावरणे कधी
हसने कधी
मध्येच कधी
सावरने कधी
न कळले मला
न कळले तुला
हे प्रेम झाले
कधी कुणा...!२

सहज निरागस
नयन तुझे
शमवी ना
माझी मृगतृष्णा
ना उमजे मला
ना उमजे तुला
हे प्रेम झाले
कधी कुणा...!

ॠतु हिरवा
हवेत गारवा
एक तुझा
सहवास हवा
न जमले तुला
न जमले मला
हे प्रेम झाले
कधी कुणा...!४

हाय रे मेरी किस्मत...!

हाय रे मेरी किस्मत
उसने पलट के भी नहि देखा...!

टि-शर्ट उतार के देखा,
धोती पहन के देखापर हाय..!१!

गॉगल पहन के देखा,
चष्मा उतार के देखापर हाय..!२!

पढाई कर के देखा,
फ़ेल होके देखापर हाय..!३!

झुल्फ़े बढाके देखा,
मुँछ मुंडाके देखापर हाय..!४!

सायकल चलाके देखा,
गाडी मे बैठ कर देखापर हाय..!५!

पलके झुकाके देखा,
नजर उठाके देखापर हाय..!६!

फ़िर मैंने दुसरी को देखा,
पर हाय रे मेरी किस्मत,
उसने अब के बार देखा,
एक नहि बार बार देखा,
बार बार नहि लगातार देखा
और कहा,
"तुमने दुसरी को क्यों देखा?"
अब यह आलम हे,
हम एक दुजे को देखते हे!
और दुनिया हमे देखती है...